गरीबी के कारण कचरा उठाने को मजबूर एक शिक्षित

शिक्षा से ही मनुष्य का विकास होता है। इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि जब व्यक्ति शिक्षित होगा तो वह अपनी शिक्षा के बल-बूते पर अपने व अपने परिवार के लिए जीवनयापन के तमाम संसाधन आदि जुटा सकता जबकि अवश्यम्भावी है कि यदि व्यक्ति अशिक्षित हो तो शायद उसे वह जीवनोपभोग के साधन जुटाने में थोडी कठिनाई का सामना करना पड़े। आज भारतवर्ष में तमाम ऐसे शिक्षित बेरोजगार मिल जाएंगे जिनके सपने तो कुछ और करने के थे लेकिन प्रशासन की बेरूखी तथा किन्हीं पारिवारिक समस्याओं के चलने वह अपने मन मुताबिक रोजगार प्राप्त नहीं कर पाए।

ऐसे ही एक शिक्षित मजदूर छोटेलाल से जब हमनें बात की तो उन्होंने हमें बताया कि उन्होंने बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई की है और वह आगे भी पढ़ना चाहते थे लेकिन घर में पसरी घोर गरीबी के कारण वह आगे नहीं पढ पाए। छोटेलाल शुरूआत से ही एक मेधावी छात्र थे और जैसे तैसे उनके परिजनों ने उन्हें कक्षा बारहवीं तक तो पढ़ाया लेकिन गरीबी के कारण वह आगे अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सके। उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के कछौना गांव से आज से तेरह साल पहले जब छोटेलाल दिल्ली आए थे तो उनके भी मन में आस थी कि वह यहां आकर कोई अच्छा सा काम करें जिससे कि वह यहां रहकर अच्छे से अपना गुजर बसर भी कर पाएं और कुछ पैसा अपने गांव भी भेज पाएं। दिल्ली में छोटेलाल को एक ठेकेदार की मदद से एक नीजी शौचालय में केयरटेकर की नौकरी मिली भी लेकिन वह ज्यादा समय तक वो नौकरी नहीं कर पाए। उन्होंने बताया कि जिस ठेकेदार के पास वह काम करते थे उसने उन पर दबाव बनाया और मजबूरन उन्हें घरों से कूड़ा उठाने का काम करना पड़ा। अभी फिलहाल छोटेलाल अपने ठेले पर घरों से कूड़ा इकट्ठा करने का काम करते हैं। छोटेलाल के दो बच्चे भी हैं जो क्षेत्रीय नगर निगम विद्यालय में पढ़ने के लिए जाते हैं। छोटेलाल अपने बच्चों को खूब पढ़ा लिखा कर एक सफल इंसान बनाना चाहते हैं लेकिन उन्होंने हमें बताया कि उन्हें सरकार पर भरोसा नहीं है कि उनके बच्चों के आर्थिक विकास में सरकार सहायक हो पाएगी क्योंकि उन्हें ऐसा डर है कि वो भी पढ़े लिखे ही थे लेकिन सरकार की नजरअंदाजगी के चलते आज इस महानगर में कूड़ा उठाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने हमें बताया कि स्वास्थ्य के नाम पर उनके पास कोई सुविधा नहीं है। नारायणा स्थित जिस बस्ती में वह रहते हैं वहां स्वचछ पेय जल की भी समुचित व्यवस्था नहीं है। सप्ताह में दो दिन जल बोर्ड का टेंकर आता है जो इतनी बड़ी बस्ती की प्यास बुझाने में असमर्थ है। उन्होंने हमें आगे बताया कि कोरोना काल में जब सरकार के द्वारा लाकडाउन लगाया गया था तब उनको बहुत बड़ी आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ा था सिर्फ वह ही नहीं लाकडाउन के समय उनकी पूरी बस्ती में आर्थिक तंगी छा गई थी और बस्ती में स्थान की कमी होने के कारण संक्रमण का भी खतरा ज्यादा था। फिलहाल छोटेलाल लोग के घरों से कचरा इकट्ठा कर के भारत को कचरा मुक्त कर रहें हैं और संसद में बैठे नेताओं के लिए यह प्रश्न निरंतर छोड़ रहे हैं कि क्या वे नेता छोटेलाल सरीखे अनेकों मजदूरों की जिंदगी से गरीबी अशिक्षा आदि का कचरा साफ कर पाएं हैं या नहीं।


-मुकेश 

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