गणतंत्र एवं उसकी आवश्यकता ।

मोटे तौर पर गणतंत्र का अर्थ किसी राष्ट्र विशेष के अंदर किसी राजा अथवा राज परिवार का शासन ना होकर के उस देश की जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का शासन है । गणतंत्र शब्द मूलतः दो शब्दों का एक संयोजित रूप है जिसमें, "गण" का अर्थ है एक आम नागरिक एंव "तंत्र" का अर्थ है शासन । इस प्रकार गणतंत्र का अर्थ हुआ, एक ऐसा देश जहां जनता के हाथों में ही शासन की बागडोर हो ।

18.जुलाई.1947 को  ब्रिटिश क्राउन ने भारत की स्वाधीनता के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए । इन कागजों में यह लिखा गया था कि, भारत को 15.अगस्त.1947 के दिन बरतानिया हूकुमत से आजादी मिल जाएगी । ब्रिटेन के हाउस ऑफ कामन्स में आजादी की तारीख तो मुकर्रर हो चुकी थी लेकिन अब भारत के सामने एक बड़ा सवाल ये खड़ा हो चुका था कि, 15.अगस्त के दिन जिन 565 देशी रियासतों को ब्रिटेन की दासता से मुक्ति मिल रही है उनका एकीकरण किस प्रकार किया जाए । विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं, दर्शनों को अपने अंदर समेटे ये रिसासतें कहने को तो एक भारत थी लेकिन जमीनी स्तर पर वास्तविकता कुछ और ही थी । इन रियासत रूपी मोतियों को भारत नाम रूपीगे में पिरोकर एक भारतमाला बनाना वाकई एक जटिल कार्य था परंतु उस समय के बुद्धिजीवियों के कूटनीतिक प्रयासों द्वारा यह कार्य भी तमाम मुश्किलों के बावजूद पूरा कर ही लिया गया और भारत को एक एकीकृत गणराज्य के रूप में सम्पूर्ण विश्व के समक्ष पहचान प्राप्त हुई । 

15.अगस्त.1947 को भारत को  ब्रिटेन के एक डोमिनियन (स्वायत्तोपनिवेश) राज्य के रूप में पहचान मिली । डोमिनियन का अर्थ है कि, शासन तो भारत के लोग ही करेंगें लेकिन उन पर एक गवर्नर जनरल भी होगा जो कि ब्रिटिश क्राउन द्वारा निर्धारित किया जाएगा । हालांकि इस मामले में ब्रिटेन द्वारा भारत को पूरी छूट दी गई थी कि, भारत अपने द्वारा अपने लोगों में से ही किसी का भी नाम इसके लिए प्रस्तावित कर सकता है । इस प्रकार भारत के प्रथम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी बने । आजादी मिलने के बाद भारत में अपने द्वारा बनाया हुआ कोई संविधान अस्तित्व में नहीं था इसलिए 26.जनवरी.1950 तक पहले की भांति ही भारत में व्यवस्था को चलाना पड़ा । 26.नवंबर.1949 को भारतीय संविधान बनकर तैयार हुआ और 26.जनवरी.1950 को इसे लागू किया गया । अब भारत में भारतीय संविधान द्वारा शासन किया जाने लगा ना कि भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम,1935 द्वारा । संविधान लागू होने के पश्चात् भारत में गवर्नर जनरल के पद की भी समाप्ति कर दी गई और भारत एक पूर्ण रूप से स्वाधीन एंव संप्रभु राष्ट्र बन गया ।

भारत अब एक गणतांत्रिक देश के रूप में सम्पूर्ण विश्व में विख्यात है । अब प्रश्न यह उठता है कि भारत को गणतंत्र की जरूरत क्यों है ? क्या भारत गणतंत्र के आभाव में अपने अस्तित्व को कायम नहीं रख सकता है ? 

निश्चित तौर पर इन प्रश्नों के उत्तर खोजना अति जटिल कार्य है लेकिन, गणतंत्र के आभाव में भारत सिर्फ एक शब्द मात्र ही है जहां भारत नाम के तंबू के नीचे अलग अलग समुदाय, राज्य, विभिन्न भाषाओं को बोलने वाले लोग आदि स्वंय को दुनिया के सामने खुद को भारत या भारतीय तो बताते हैं लेकिन उनकी जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है । भारत एक गणतांत्रिक देश है इसलिए, एकीकृत भी है । यदि भारत में गणतंत्र की संकल्पना नहीं होती तो आज शायद भारत कई छोटे छोटे टुकडों में बंटा हुआ होता । भारत का भौगोलिक विस्तार उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक एंव पश्चिम में राजस्थान से लेकर पूर्व में अरूणाचल तक है । इनके बीच की दूरियों में विभिन्न भाषाओं, धर्मों, संस्कृतियों, विचारों आदि को मानने वाले लोग निवास करते हैं । उन सभी के लिए उनके जीवन के मूल्यों के मूल बिंदु उनकी संस्कृति, भाषा, धर्म आदि हो सकते हैं लेकिन उन्हें जो एक चीज एक सूत्र में बांधे रखती है वो है, भारत देश की गणतांत्रिक व्यवस्था । गणतंत्र के अंतर्गत प्रावधान है कि, राज्य का प्रमुख जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि ही होगा, राज्य में किसी व्यक्ति को भी उसके वंश के आधार पर कोई विशेषाधिकार नहीं मिलेगा, राज्य द्वारा उल्लेखित पदों पर कोई भी आम नागरिक आवेदन कर सकता है, सभी को मतदान का अधिकार होना चाहिए जिससे कि राज्य में संप्रभुता कायम की जा सके । परंतु यह विचारणीय है कि, भारत के भीतर कहीं ना कहीं गणतंत्र की आड़ में धीरे धीरे ही सही लेकिन राजतंत्र पुन: प्रवेश कर रहा है । वर्तमान समय की ही बात की जाए तो भारत में लगभग 15 से ज्यादा राज्यों में वंशानुगत राजनीति का ताना-बाना फलता फूलता देखा जा सकता है । विचारणीय है कि, यदि किसी बच्चे के परिवार में से कोई राजनेता/अभिनेता आदि हो तो ऐसा ज़रूरी नहीं है कि उस बच्चे में भी वही गुण विद्यमान हों कि वो अपने पारिवारिक पेशे को करने के लिए सुयोग्य हो । भारत के लोगों को चाहिए कि वे, अपने मताधिकार का उचित प्रयोग करते हुए ऐसी सरकार का चयन करें जिसके अंदर भी सभी सदस्यों को सत्ता की बागडोर संभालने का अवसर प्रदान किया जाए ना कि ऐसी सरकारों का जिनके भीतर एक परिवार विशेष के लोगों को ही बार बार मौका दिया जाता है । इसके अलावा दुनिया में कई ऐसे देश हैं जो कहने को तो गणतांत्रिक हैं लेकिन उन देशों में निवास कर रहे वहां के नागरिक कहीं ना कहीं पिंजरे में बंद एक पंछी की तरह है । यदि भारत की तुलना इनसे की जाए तो, भारत में प्रत्यक्ष लोकतंत्र के चलते भारत के नागरिकों को  उन देशों के नागरिकों की तुलना में ज्यादा अभिव्यक्ति की आजादी है । 

मनुष्य एक स्वतंत्र प्रकृति का प्राणी है । जैसा कि कहा भी गया है कि, "पराधीनता सपनेहुं सुख नांहीं", इसलिए मानवाधिकारों की पूर्णता के लिए भी किसी देश में गणतंत्र का होना बहुत ज़रूरी है । प्रत्यक्ष गणतंत्र के आभाव में सत्ताधारी दल राज्य में मनमाने ढंग से कई प्रतिबंध लगा सकता है । उत्तर कोरिया इसका एक जीता जागता उदाहरण है । इसलिए प्रशासन की निरंकुशता पर अंकुश लगाने के लिए भी किसी देश में गणतांत्रिक व्यवस्था का होना बहुत ज़रूरी है । इसके अलावा गणतंत्र की अवधारणा को पूरी दुनिया में सौहार्द और शांति कायम रखने के एक प्रमुख औजार के रूप में भी देखा जा सकता है क्योंकि एक प्रत्यक्ष गणतांत्रिक व्यवस्था ही इंसान के प्राकृतिक अधिकारों की पैरवी करती है । इंसान के मन में हमेशा यह उत्सुकता बनी रहती है कि, उसके आसपास हो रही तमाम घटनाओं से वह वाकिफ रहे, वह नित नई खबरों से रूबरू होता रहे । लेकिन ऐसा तभी हो सकता है जब किसी देश के भीतर स्वतंत्र व निष्पक्ष पत्रकारिता का तंत्र विद्यमान हो और प्रेस व पत्रकारिता की आजादी के लिए किसी देश का गणतांत्रिक होना कितना ज़रूरी है इस बात का अंदाजा हाल ही में जारी हुए विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक के द्वारा लगाया जा सकता है । इस सूचकांक में निचले पायदानों पर इरिट्रिया, उत्तर कोरिया, तुर्कमेनिस्तान, चीन सरीखे ऐसे देश काबिज हैं जो महज कहने को ही गणतांत्रिक देश हैं । हालांकि इस सूचकांक में भारत की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं है, जिसे भारत की बुद्धिजीवी जनता को अपने अधिकारों के प्रति सजग होकर दुरुस्त करना होगा । इसीलिए किसी देश में प्रेस की स्वतंत्रता के लिए भी गणतांत्रिक व्यवस्था का होना बहुत महत्वपूर्ण है ।

यूं तो वर्तमान में भारत एक गणतांत्रिक देश है लेकिन, जनता को ही विचार करना है कि, जिस गणतांत्रिक व्यवस्था की संकल्पना 26.जनवरी.1950 के दिन की गई थी क्या अभी तक भी हम गणतंत्र के उन लक्ष्यों की पूर्ति कर पाएं हैं ।

मुकेश 

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