किसी भी समाज, सभ्यता, संस्कृति आदि के विकास के लिए विभिन्न आयामों को एक सूचक के रूप में देखा जा सकता है लेकिन मानवजाति के विकास के पीछे का एक महत्वपूर्ण कारक स्वच्छता भी है । मनुष्य का स्वभाव भी है कि वह जैसे वातावरण में रहेगा, उसका व्यवहार भी वैसा ही हो जाएगा । उदाहरणत: यदि किसी बालक को बचपन से ही किसी साफ-सुथरे विद्यालय में अध्य्यन के लिए भेजा जाए तो भविष्य में भी संभवतः उस बच्चे का व्यवहार स्वच्छता प्रिय ही होगा । क्योंकि बचपन से ही उसके अंतर्मन में स्वच्छता को लेकर जो चित्र खींचा गया है उसकी छाप उस पर जीवनपर्यंत रहेगी ।
मानव समाज बहुत तेजी से विकास कर रहा है । आए दिन नित नई खोजें होती रहती है । लेकिन इसी बीच इन खोजों, अनुसंधानों के फलस्वरूप इंसान ने सुख सुविधाओं की प्राप्ति तो कर ली है लेकिन इनसे प्रकृति को जो नुकसान हुआ है वह वाकई चिंता का विषय है । जैसे फ्रिज, ए. सी. से निकलने वाली गैसों से होने वाली प्राकृतिक अस्वच्छता, विभिन्न करखानों से निकलने वाले अपशिष्टों से फैलने वाली अस्वच्छता । इस तरह हमारा वातावरण धीरे धीरे अपने प्राकृतिक स्वच्छ रूप को खोकर अस्वछ होता जा रहा है । इसी कड़ी में यहां एक बात और जुड़ सकती है जो है, आज के समय में सिर्फ प्राकृतिक और शारीरिक तौर पर ही मनुष्य अस्वच्छ नहीं है अपितु इंसान पर वर्तमान समय की व्यस्त जीवनशैली के चलते स्वार्थपरकता, भावशून्यता, अमानवता और ना जाने कितने ही प्रकार के गैर मानवीय गुणों की अस्वचछता छाई हुई है ।
स्वच्छता को अपनाकर ही एक हर प्रकार से स्वस्थ समाज का निर्माण किया जा सकता है और स्वच्छता से सने हुए इस समाज के निर्माण में जो एक अवश्यम्भावी तत्व है, वह संचार है । संचार ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा हम अपनी बात किसी अन्य तक पंहुचा सकते हैं । दूसरे शब्दों में कहा जाए तो एक दूसरे के विचारों के आदान प्रदान का एक महत्वपूर्ण कारक संचार ही है । विषय चाहे कोई भी हो परंतु संचार की गैर मौजूदगी में वह पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकता है । यूं तो विश्व स्तर पर स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए समय समय पर सम्मेलन आयोजित होते रहते हैं लेकिन यहां पर विचारणीय यह है कि, प्राकृतिक रूप से स्वच्छता को बढ़ावा देने वाले इनमें से ज्यादातर सम्मेलन पूर्णत: वातानुकूलित कमरों में सम्पन्न होते हैं । हां, ये वही वातानुकूलित कमरें होते हैं जिनमें लगे एयर कंडीशनरों से निकलने वाले अपशिष्टों से सम्पूर्ण विश्व के समक्ष वैश्विक उष्मीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) जैसी गंभीर समस्या खड़ी होती है । ऐसे में शायद इन सम्मेलनों आदि में जो मानवता के लिए जो संचार होता है उसकी भूमिका नगण्य के समतुल्य ही है उदाहरणत: हाल ही में सम्पन्न हुआ कोप 26 सम्मेलन । ऐसा नहीं है कि, स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी संचार नही हो रहा है लेकिन ऐसे प्रभावी माध्यमों की संख्या अभी उतनी नहीं है जितनी की होनी चाहिए ।
स्वच्छता के लिए संचार एक महत्वपूर्ण औजार है इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है, बड़े शहरों में ही नहीं आजकल तो छोटे कस्बों में भी ज्यादातर मोहल्लों, कालोनियों, सोसाईटियों आदि में घरेलू कचरे को लेने के लिए कूडा लेने वाले आते ही हैं जो महीने के अंत में अपने इस काम के एवज में सभी घरों से कुछ पैसे भी लेते हैं । जब वह कूडे वाला आता है तो हम सभी घर में एक दूसरे को कहते हैं कि, कूडे वाला आया है उसकी रेहडी/रिक्शा में कूड़ा फेंक दो । ऊपर जो इतनी बात लिखी गई उसमें संचार की दृष्टि से यदि देखा जाए तो एक बारीक सा अंतर है, जो शायद स्वच्छता के साथ साथ मानवीय सौहार्द को भी बढ़ावा देता है । वह अंतर ये है कि, हमनें कूडा इकट्ठा करने वाले व्यक्ति को सम्बोधित करते हुए कहा कि, कूडे वाला आया है उसके ठेले में कूड़ा फेंक दो लेकिन यहां पर विचार करने वाली बात ये है कि, वो व्यक्ति तो सफाई वाला है । कूडे वाले तो हम हैं जो हमें रोज अपने घरेलू कचरे के निपटारे के लिए उस सफाई वाले की जरूरत पड़ती है ।
बात बहुत बारीक सी है लेकिन वास्तविक अर्थों में शायद यही संचार की प्रबलता है जिसके द्वारा स्वचछता के लक्ष्य को साधा जा सकता है । हमारे कूडे वाले से, सफाई वाले कहकर संबोधन मात्र से संचार कितना प्रबल होता है शायद इसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है ।
स्वच्छता से ही स्वस्थ समाज का निर्माण होता है । जहां स्वच्छता होती है उस स्थान पर अधिक मात्रा में सकारात्मकता होती है, इसीलिए हमें सदैव स्वच्छता के मार्ग पर चलना चाहिए और स्वच्छता के इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु सदैव प्रभावी एवं अनुकूल संचार को अपनाना चाहिए जिससे कि एक स्व्स्थ एवं स्वच्छ राष्ट्र का निर्माण हो सके ।
मुकेश
Write a comment ...