आम नरमदिल आदमी विकास का सख़्त लोहा खींचने को मजबूर

विकास के नाम पर समय समय पर तमाम तरह के वादे तो किए जाते हैं। हां उनसे कुछ हद तक विकास भी जरूर होता है लेकिन उस विकास के दायरे से जो इंसान बाहर रह जाता है वो है इस देश का गरीब मजदूर जिसे सरकारों की आलोचना तो करनी नहीं आती मगर जब चुनाव आने को होते हैं और संसद में बैठने वाले भावी नुमाइंदे वोट मांगने उनके द्वारे पर आते हैं तो ये गरीब मजदूर उन्हें खूब खूब आशीर्वाद देते हैं और इसके बदले उन्हें क्या मिलता है, कदम कदम पर तिरस्कार और गरीबी।

घोर गरीबी के दर्द से करहा रहे ऐसे ही एक गरीब मजदूर नन्हेलाल से जब हम मिले तो अपनी ओर हमें आता देख पहले तो वह घबरा गया और डर के मारे वहां से जाने की कोशिश करने लगा। नन्हेलाल को सांत्वना देने पर उसने हमें बताया कि वो बीस साल पहले उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले से दिल्ली में आजीविका कमाने के लिए आया था और तब से लेकर अब तक वो दिल्ली और आस पास के इलाकों की सड़कों अपने ठेले पर लोहे के सरियों को ढो रहा है। नन्हेलाल का शरीर इतना कुपोषित है कि वह देश के विकास में लगने वाले इन मजबूत सरियों को नहीं खींच सकता लेकिन उसके परिवारजनों के पेट की भूख का वजन इतना ज्यादा है कि उस वजन के सामने विकास के ये सरिये उसे बहुत हलके मालूम होते हैं। इन बीस सालों में दिल्ली में बहुत कुछ बदला लेकिन कुछ नहीं बदला तो नन्हेलाल की गरीबी का आलम। नन्हेलाल ने हमें बताया कि उसके परिवार में उसकी पत्नी तीन बच्चे तथा उसकी बूढ़ी मां है। ठेला चलाने से जो भी थोडी बहुत कमाई होती है उससे घर के खर्चे ही बमुश्किल पूरे हो पाते हैं तो फिर वह अपने बच्चों को स्कूल कैसे भेजे। इस तरह कहा जा सकता है कि देश के लिए इस गरीब मजदूर नन्हेलाल के बच्चों की पढ़ाई का खर्च शायद ज्यादा है और सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट या सरकार की अन्य परियोजनाओं का कम। नन्हेलाल ने हमें बताया कि उसने पिछले सात सालों से खुद के लिए कोई कपड़ा नहीं सिलवाया है क्योंकि उसकी आमदनी उसे इस तरह के खर्चों की इजाजत नहीं देती। उसे और उसके परिवार को जो कोई खुश होकर जो कोई कपड़ा देता है वह खशी खुशी उसे पहन लेता है और अपने भाग्य की सराहना करता है। इसके विपरीत हमारे ही देश में एक तबका उन नेताओं का भी है जो अपने तन को मंहगे सफेद कपड़ों से ढकते हैं लेकिन फिर भी तमाम तरह के घोटालों में उनकी संलिप्तता पाई जाने के कारण निश्चित तौर पर उनके मंहगे लिबासों की सफेदी कम होती है।

जब हम नन्हेलाल से बात करने उसके करीब जा रहे थे तो वो डर के मारे पीछे होने लगा। बाद में जब हमनें उससे इसका कारण पूछा तो उसने हमें बताया कि शहर में कुछ पुलिस वाले या और कुछ धनिक लोग उससे बदतमीजी करते हैं कई तो उससे मारपीट करने से भी पीछे नहीं हटते। ये दिखाता है कि देश के गरीबजन में सत्ता और धनिकों का कितना भय है। संविधान के समक्ष देश का गरीब व्यक्ति भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि एक अमीर। देश का विकास गरीब से ही होकर गुजरता है। असल मायनो में गरीब का विकास ही देश का विकास है।

-मुकेश

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