भारत की शुरुआत भारत के गांवों से होती है । अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत की जो छवि बनी है उसके पीछे मूल रूप से ग्रामीण भारत की सक्रिय भूमिका है । भारत की कुल जनसंख्या की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है । केंद्र सरकार के पिछले वर्ष के बजट में भी गांव, गरीब और किसान की बात की गई थी । ग्रामीण भारत में आय का मुख्य स्रोत कृषि है ऐसे में आगामी केंद्रीय बजट में यह देखना होगा कि सरकार कृषि क्षेत्र को कितना बजट आवंटित करती है जबकि अभी हाल ही में ही में केंद्र सरकार द्वारा तीन कृषि कानूनों को वापिस लिया गया है, जिसका सीधा असर वर्ष 2024 में होने वाले आम चुनावों पर पड़ सकता है । पिछले केंद्रीय बजट में कृषि क्षेत्र को सुदृढ करने पर जोर दिया गया था जिसके तहत मूलतः किसानों की आय में बढ़ोतरी, कृषि मंडियों के डिजटलीकरण की बात की गई थी । पिछले कई दशकों से किसानों की आय बढ़ाने की बात की जा रही है लेकिन योजनाओं के क्रियान्वयन में दुरूस्तगी में कमी साफ तौर पर देखी जा सकती है । वर्ष 2020-21 के आर्थिक सर्वेक्षण में दर्शाया गया है कि, महामारी के दौरान केवल कृषि क्षेत्र ही ऐसा क्षेसड़केंकें रहा जिसके द्वारा देश की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में लगभग 2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई । कोविड महामारी के दौरान कृषि विकास दर में 3.4 प्रतिशत की वृद्धि होने से जीडीपी में कृषि का योगदान 17.8 प्रतिशत से बढ़ कर 19.9 प्रतिशत हो गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 में देश की जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान 17.8 प्रतिशत था । इससे पहले 2003-04 में देश की कुल जीडीपी में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 20.77 प्रतिशत थी। इसके बाद से लगातार जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी कम हो रही है।
ग्रामीण भारत की एक बहुत बड़ी आबादी केंद्र सरकार की MANREGA (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम) योजना के तहत रोजगार प्राप्त करती है इसके तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को एक साल में 100 दिन रोजगार उपलब्ध कराया जाता है । पिछले कुछ वर्षों में मनरेगा योजना को आवंटित किए गए बजट में लगातार वृद्धि ग्रामीण भारत के विकास का सूचक है । मनरेगा को वर्ष 2016-17 में 38,500 करोड रूपए, वर्ष 2017-18 में 48,000 करोड रूपए और वर्ष 2018-19 में 55,000 करोड और वर्ष 2019-20 में 60,000 करोड रूपए आवंटित किए गए थे । मनरेगा जैसी योजना से काफी हद तक श्रमिकों के पलायन पर भी रोक लगती है इस लिहाज से भी आगामी केंद्रीय बजट से ग्रामीण भारत को काफी उम्मीदें हैं । इसके अलावा आगामी केंद्रीय बजट में ग्रामीण आधारभूत ढांचे को और ज्यादा परिपक्व बनाने पर भी सरकार का जोर रहेगा । अभी भी ग्रामीण इलाकों में अच्छी सड़के ना होना किसानों की एक बहुत समस्या है जिसके चलते किसान अपनी तैयार फसल को समय पर कृषि विपणन मंडियों में ठीक दामों पर बेच नहीं पाता । ऐसा इसलिए देखने में आता है क्योंकि जब तक किसान अपनी उपज को बेचने जाता है तब तक उसकी फसल में वह गुणवत्ता नहीं रहती क्योंकि ग्रामीण इलाकों में अच्छी सड़के ना होने के कारण फसल मंडियों में समय पर नहीं पहुंच पाती । इसके लिए भी आगामी केंद्रीय बजट में आधारभूत संरचना को मजबूत बनाने के लिए अच्छा वित्त आवंटित होने की उम्मीद है । वित्त वर्ष 2024-25 तक भारत को पांच लाख डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की बनाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लक्ष्य एक जटिल लक्ष्य है, क्योंकि जब तक ग्रामीण भारत में बुनियादी सुविधाओं को मुह्हैया नहीं कराया जाएगा तब तक इस प्रकार का लक्ष्य हासिल करना थोड़ा मुश्किल है । कोरोना महामारी इसे और मुश्किल बनाता है । अगर केंद्र सरकार को अपने इस लक्ष्य को हासिल करना है तो आगामी बजट में स्वास्थय क्षेत्र को और वित्त देना होगा व ग्रामीण इलाकों में कोरोना टीकाकरण की रफ़्तार को और तेज करना होगा । इससे पहले भारत को एक ट्रिलियन इकोनोमी बनने में 6 दशकों का लंबा समय लगा था । किसानों के बीच सबसे बड़ा डर होता है कि कहीं उनकी फसलों का नुकसान ना हो जाए जिसके निपटारे के लिए सरकार कई योजनाएं भी चला रही है । किसानों के बीच से इस डर को और खत्म करने के लिए देखना होगा कि बजट में इससे संबंधित और क्या क्या सुधार किए जाते हैं ।
बहरहाल, गांवों की खुशहाली से ही भारत की खुशहाली है इसलिए ग्रामीण भारत को बजट से काफी उम्मीदें हैं ।
-मुकेश
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