प्रेम...

छिन चढ़े छिन उतरे, सो तो प्रेम ना होए,

पंछी बन पिंजरे बसे, प्रेम कहावे सोए ।।

प्रेम तो एक ऐसी निश्छल भावना है जो, सभी परिस्थितियों में एक समान रहती है । चाहे आपका वह प्रेम ईश्वर के प्रति हो, चाहे किसी इंसान के प्रति हो अथवा किसी अन्य वस्तु के प्रति हो । शाश्वत प्रेम का सर्वप्रथम लक्षण यही है कि वह सदैव एक स्थिर अवस्था में प्रेमी के ह्रदय कमल में विद्यमान रहता है जिसकी सुगंधी भी हर परिस्थिति में अपने आस पास के वातावरण को सुगंधित करती रहती है । बहुधा संसार में देखा जा सकता है कि, प्रेमियों के ह्रदय की झील में कभी कभी तो प्रेम की लहरें हिलोरे लेने लगती हैं एवं कभी कभी उस झील में ऐसा सूखा पड़ता है जिसकी गर्मी से दोनों के ह्रदय, प्रेम रुपी प्यास के कारण तृषित हो जाते हैं । वास्तव में यह प्रेम नहीं है अपितु प्रेम तो वह है जो एक पक्षी की न्याईं प्रति क्षण प्रेमियों के दिल रूपी पिंजरे में बसा रहे। वह नहीं जिसमें प्रेम रुपी पिंजरे का मुख खुला रहे एवं प्रेमी रुपी पक्षी अपनी निजी सुविधा के अनुसार उस पिंजरे में आवागमन करते रहें । इसलिए शाश्वत प्रेम वही है जो सभी परिस्थितियों में एकसमान रहे जिसमें लेशमात्र भी छलकपट ना हो, अपने प्रियतम के नाम के श्रवण मात्र से ही नयनों की सीमा पर प्रेम के बिंदुओं का उद्गम हो।

🙏जय श्री राम 🙏

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